PART.07
दशरथ का देहावसान
राम के सीता के विवाह के बाद दशरथ ने यह घोषणा कर दी कि राम का राज्याभिषेक तुरन्त होगा। कैकेयी की एक कुबड़ी दासी थी मन्थरा जिसने कैकेयी को बचपन से पाल-पोस कर बड़ा किया था और कैकेयी के विवाह के बाद उनके साथ ही आ गई थी। वह एक कुटिल राजनीतिज्ञ थी। उसने कैकेयी को मंत्रणा दी कि राम के राज्याभिषेक से कैकेयी का भला नहीं वरन् अनहित ही होने वाला है। उसने कैकेयी को राजा दशरथ से अपने दो वर मांगने की सलाह दी। यह घटना उस समय की है जब दशरथ देवों के साथ मिलकर असुरों के विरुद्ध युद्ध कर रहे थे। असुरों को खदेड़ते समय उनका रथ युद्ध के कीचड़ (रक्त, पसीना तथा मृतक शरीर) में फँस गया। उस रथ की सारथी स्वयं कैकेयी थीं। उसी समय किसी शत्रु ने युधास्त्र चला कर दशरथ को घायल कर दिया तथा वह मरणासन्न हो गये। यदि कैकेयी उनके रथ को रणभूमि से दूर ले जाकर उनका उपचार नहीं करतीं तो दशरथ की मृत्यु निश्चित थी। दशरथ ने होश में आकर कैकेयी से कोई भी दो वर मांगने का आग्रह किया। उस समय अयोध्या साम्राज्य की परिस्थितियाँ अनुकूल थीं तथा सभी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में जी रहे थे अतः कैकेयी ने वह वर मांगने से इनकार कर दिया और यह कह कर टाल दिया कि समय आने पर वह यह वर मांग लेंगी। अब जबकि दुष्ट मंथरा के बहकावे में आकर कैकेयी को यह आभास हो गया कि श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद उसका अनहित ही होने वाला है, उसने कोपभवन में जाने का विचार कर लिया।[5]
उस काल में रनिवास में एक कोपभवन होता था जहाँ कोई भी रानी किसी भी कारणवश कुपित होकर अपनी असहमति व्यक्त कर सकती थी और राजा का कर्तव्य होता था कि उसे कोपभवन के प्रांगण में जाकर उस रानी को मनाना पड़ता था। राजा दशरथ ने भी वैसा ही किया। जब कैकेयी ने अपने दो वर मांगने की इच्छा दर्शाई तो कामोन्मुक्त राजा दशरथ राज़ी हो गये। यहाँ पर यह नहीं भूलना चाहिये कि कैकेयी दशरथ की सबसे युवा रानी थी और राजा दशरथ स्वयं चौथे काल में पहुँच गये थे। (इस व्याख्यान के संदर्भ में यह बताना उचित होगा कि हिन्दू धर्म के अनुसार चार प्रकार के काल या आश्रम बताये गये हैं — गर्भाश्रम – जो कि मनुष्य के जन्म से लेकर लगभग आठ वर्ष की उम्र तक अपनी माता के साथ रहने को कहते हैं, ब्रह्मचर्याश्रम – जो कि लगभग आठ से पच्चीस वर्ष की आयु तक होता है और व्यक्ति गुरुकुल में विद्या तथा सांसारिक ज्ञान अर्जित करने में व्यतीत करता है, गृहस्थाश्रम – जो कि लगभग पच्चीस से पचास वर्ष तक की आयु का होता है और व्यक्ति गुरुकुल के गुरु द्वारा आयोजित विवाह के सांसारिक बोध में अपने को समर्पित कर देता है तथा वामप्रस्थाश्रम – जब मनुष्य ईश्वर की उपासना की ओर गतिबद्ध हो जाता है। यहाँ पर भी वह अपने सांसारिक उत्तरदायित्व का निवारण करता है।[5]
पाँचवीं अवस्था जो कि वैकल्पिक है, सन्यास की है, जब व्यक्ति सांसारिक मोह माया के परे जाकर केवल भगवत् स्मरण करता है। इस अवस्था के लिए यह अनिवार्य है कि मनुष्य ने अपने सारे उत्तरदायित्व भलि भांति निभा लिए हों। इस अवस्था में मनुष्य अरण्य में जाकर ऋषियों की शरण लेता है।) अतः उनका कैकेयी के प्रति वासना जागना स्वाभाविक था और उस वासना के लिए जो भी बन पड़े वह निभाने के लिए राजा दशरथ तत्पर रहते थे। अब कैकेयी ने राजा दशरथ से वह दो वर मांगे। एक से स्वयं के पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी तथा दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास। राजा दशरथ यह बर्दाशत न कर सके। उन्होंने कैकेयी को बहुत मनाने की कोशिश की। उसे बुरा-भला भी कहा। लेकिन जब कैकेयी ने उनकी एक न मानी तो वह आहत होकर वहीं कोपभवन में गिर गये।
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