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Kantilal suthar
Pakistan occupied Kashmir: क्या पाक अधिकृत कश्मीर में बढ़ता असंतोष भारत के लिए एक अवसर है?
इससे पहले कि हम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के बयानों के अर्थ समझने की कोशिश करें, जिनमें पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की बात कही गई है, हमें बांग्लादेश बनने से पहले वहां हुई घटनाओं को समझना चाहिए।
पाकिस्तान पर पंजाब और पंजाबियों की हुकूमत चल रही थी, और वे सिंधियों, बलूचियों, बंगालियों को गुलामों की तरह रखने की कोशिश कर रहे थे। व्यापक जनसंहार, बलात्कार और यातनाएं दी जा रहीं थीं, जिसने पूर्वी पाकिस्तान के लगभग सभी परिवारों को प्रभावित किया।
इस दौरान करीब 30 लाख लोगों की मौत हुई। जिस पर पूर्वी पाकिस्तान के भीतर से बगावत शुरू हुई, तब जाकर भारत ने मदद दी और बांग्लादेश बना। अगर लोगों की खुद बगावत की इच्छा न हो, तो बाहरी मुल्क कुछ नहीं कर सकता। यूक्रेन का ताज़ा उदाहरण हमारे सामने है, पूर्वी यूक्रेन का डोनबॉस क्षेत्र अगर बगावत करके रूस के साथ मिलने को उतावला नहीं होता, तो रूस की यूक्रेन पर हमले की हिम्मत नहीं होती।

गृह मंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अगस्त 2019 के बाद कोई दर्जन भर बार पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की बात कही है। 2021 में जनरल विपिन रावत ने भी पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर खुल कर बयान दिए थे। उन्होंने एक बड़ा बयान दिया था कि पीओके को पाकिस्तान सरकार नहीं बल्कि आतंकवादियों और उनके संगठनों की ओर से नियंत्रित किया जाता है। उनके इस बयान पर पाकिस्तान ही नहीं, भारत की विपक्षी पार्टियों से भी तीखी प्रतिक्रिया आई थी। नए सीडीएस अनिल चौहान ने भी पीओके पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के ताज़ा बयान को दोहराते हुए कहा है कि सरकार का आदेश मिलते ही तीनों सेनाएं पीओके आपरेशन को सम्पन्न कर देंगी। इससे पहले सेना प्रमुख मुकंद नरवाने ने भी कहा था कि पीओके को लेकर संसदीय संकल्प को पूरा करने के लिए जब भी आदेश मिलेंगे, तो हम उचित कार्रवाई करेंगे।

क्या पीओके में भी हालात कुछ ऐसे हैं जो बांग्लादेश के तत्कालीन घटनाक्रम से मिलते जुलते हैं? पीओके में पाकिस्तानी फ़ौज का कब्जा है, स्थानीय नागरिकों की चप्पे चप्पे पर तलाशी ली जाती है। पाकिस्तानी सैनिक उसी तरह कश्मीरी औरतों का शोषण कर रहे हैं, जिस तरह बांग्लादेश में किया जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयानों और भारत के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले भारतीय सेना की और से पीओके में घुस कर किए गए आपरेशन ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीरियों के हौंसले बुलंद किए हैं। 2021 के पाक अधिकृत कश्मीर के स्थानीय चुनावों में हुए फर्जीवाड़े ने कश्मीरियों को बगावत के लिए मजबूर कर दिया है, वे भारत के कश्मीर में हो रहे विकास और लोकतंत्र की तुलना पीओके के हालात से करने लगे हैं। पूरे क्षेत्र की स्थिति तो यह है कि पीओके की आबादी 40 लाख है, इनमें से लगभग 14 लाख कश्मीरी दूसरे देशों में बस चुके हैं और छोटे मोटे काम कर रहे हैं। लेकिन क्या वे बगावत करने की स्थिति में हैं, इसे समझने के लिए इस साल वहां हुई राजनीतिक घटनाओं की समीक्षा करनी पड़ेगी। पीओके के लिए वित्तीय अनुदान में भारी कटौती करने के पाकिस्तान सरकार के फैसले के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त करते हुए, कैबिनेट के सदस्यों और क्षेत्र के संसदीय सचिवों ने 2022-23 का बजट ही पेश नहीं किया। पीओके के प्रधानमंत्री सरदार तनवीर इलियास की रहनुमाई में हुई केबिनेट बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया है। पीओके में रह रहे कश्मीरी और विदेशों में रह रहे कश्मीरियों को यह समझ आ गया है कि इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान ने उनके साथ धोखा किया। इसलिए बगावत की शुरुआत हो गई है।

पीओके के कश्मीरी मुसलमानों ने बलूचिस्तान की तरह पाकिस्तान के खिलाफ हथियार उठाने का फैसला कर लिया है। इसके लिए बड़ी व्यापक तैयारी शुरू हो चुकी है। पीओके के बगावती नेता अमजद अयूब मिर्जा ने कहा है कि पाकिस्तान 23 अक्टूबर 2023 तक पीओके छोड़ कर चला जाए, नहीं तो कश्मीरी हथियार उठा लेंगे। अब वे आज़ाद देश भी नहीं चाहते, वे भारत में मिलना चाहते हैं और अखंड भारत की बात करने लगे हैं।
अब हम पीओके के हालात और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के जम्मू कश्मीर में जाकर दिए गए बयान को मिला कर देखें। राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान मानवाधिकार के नाम पर भारतीय लोगों पर अत्याचार कर रहा है। उन्होंने पीओके नागरिकों को भारतीय नागरिक कहा है, याद रहे कि भारत ने जम्मू कश्मीर विधानसभा की 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोडी हुई हैं। राजनाथ सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारतीय नागरिकों के मानवाधिकार हनन की कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़ेगी। उन्होंने भी उसी विकास की तुलना की, जो पीओके में लोग करने लगे हैं।
उन्होंने कहा कि भारत ने लद्दाख के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के विकास की यात्रा शुरू कर दी है और यह यात्रा तब तक पूरी नहीं होगी जब तक यह गिलगित और बाल्टिस्तान तक नहीं पहुंच जाती। तो यह राजनाथ सिंह की और से पीओके और गिलगित और बाल्टिस्तान के लोगों को सार्वजनिक तौर पर किया गया विकास का वायदा है। पिछले तीन साल से भारत के प्रमुख मंत्रियों और सैनिक अधिकारियों की बयानबाजी पीओके की जमीनी हकीकत से मेल खाती है। अब देखना यह है कि अंदर से बिखर रहा पाकिस्तान कब तक एक रह पाता है।



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